अरुण आदित्य-
विमल कुमार को बधाई दीजिए। कुछ पाने के लिए नहीं, बल्कि ठुकराने के लिए। वरिष्ठ कवि, पत्रकार और स्त्री-विमर्श की महत्वपूर्ण पत्रिका ‘स्त्री लेखा’ के संपादक विमल कुमार ने बिहार सरकार का ‘राष्ट्रकवि दिनकर पुरस्कार’ लेने से इनकार कर दिया है।
चार लाख रुपये का यह पुरस्कार ठुकराते हुए विमल कुमार ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भेजी गई चिट्ठी में लिखा है कि वे वर्षों तक एक समाचार एजेंसी की ओर से दिल्ली से बिहार सरकार और पार्टी को कवर करते रहे हैं, इसलिए नैतिक दृष्टि से यह उचित नहीं होगा कि वे यह पुरस्कार स्वीकार करें।
पत्र में यह भी लिखा है कि लेखक-पत्रकार को सदैव प्रतिपक्ष में रहना चाहिए और सत्ता से दूर रहना चाहिए। इस लिहाज से भी यह पुरस्कार लेना साहित्य और पत्रकारिता की नैतिकता के खिलाफ है। आज देश में जिस तरह के हालात पैदा हो गए हैं विशेषकर बिहार में भी हालात खराब हो रहे हैं, उसे देखते हुए एक निष्पक्ष पत्रकार और लेखक के लिए उचित नहीं कि वह कोई सरकारी पुरस्कार ग्रहण करे।
आज जब अनेक पत्रकार, साहित्यकार छोटे-छोटे पुरस्कार के लिए आत्मा गिरवी रखने को तैयार हैं, विमल कुमार का यह कदम प्रेरक और सराहनीय है। बधाई विमल कुमार (Vimal Kumar) जी।
“पत्रकार और लेखक विमल कुमार ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखकर दिनकर पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया है। उन्होंने कहा कि सत्ता से दूरी और पत्रकारिता की नैतिकता बनाए रखने के लिए यह ज़रूरी है कि लेखक-पत्रकार किसी भी सरकारी सम्मान को स्वीकार न करें।”