चेन्नई/श्रीहरिकोटा. पूर्वी सिंहभूम जिले के सरकारी विद्यालयों की 28 छात्राओं का दल इन दिनों इसरो (ISRO) के शैक्षणिक भ्रमण पर है। यात्रा के दूसरे दिन छात्राओं ने न केवल विज्ञान और तकनीक से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल कीं, बल्कि भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत का भी प्रत्यक्ष अवलोकन किया।
यात्रा की शुरुआत चेन्नई स्थित मॉडल स्कूल, कोवालम से हुई, जहां छात्राओं ने अत्याधुनिक प्रयोगशालाओं, स्मार्ट क्लासरूम, समृद्ध पुस्तकालय और विज्ञान परियोजनाओं का निरीक्षण किया। यहां स्थानीय विद्यार्थियों के साथ संवाद कर उन्होंने वहां की पढ़ाई की पद्धति, सह-पाठ्यक्रम गतिविधियों और खेलों में भागीदारी के बारे में जाना। विद्यालय प्रबंधन ने झारखंड से आई छात्राओं को नवाचार आधारित शिक्षण मॉडल और विज्ञान शिक्षा में किए जा रहे प्रयासों की विस्तृत जानकारी दी।
इसके बाद छात्राओं का दल तमिलनाडु के महाबलीपुरम पहुंचा, जो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। यहां उन्होंने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित ऐतिहासिक स्थलों जैसे महाबलीपुरम किला, महाबलीपुरम मंदिर, म्यूजियम और टाइगर केव का भ्रमण किया। टाइगर केव, प्राचीन पल्लव कालीन शिल्पकला का अद्वितीय उदाहरण, अपने सुंदर शिलाचित्रित गुफा मंदिर के लिए जाना जाता है।
इन स्थलों के अवलोकन के दौरान छात्राओं ने दक्षिण भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, स्थापत्य कला और इतिहास से जुड़ी कई रोचक जानकारियां प्राप्त कीं। यात्रा के दौरान गाइड और स्थानीय विशेषज्ञों ने उन्हें इन स्मारकों के निर्माण काल, स्थापत्य तकनीक और सांस्कृतिक महत्व के बारे में विस्तार से बताया।
उपायुक्त श्री कर्ण सत्यार्थी ने इस भ्रमण के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ऐसे शैक्षणिक अनुभव छात्रों को पाठ्यपुस्तकों से बाहर वास्तविक दुनिया से जोड़ते हैं। उन्होंने कहा, “यह भ्रमण विद्यार्थियों को इतिहास, विज्ञान और संस्कृति के आपसी संबंध को समझने का अनूठा अवसर प्रदान करता है। इसरो, उत्कृष्ट विद्यालय और विश्व धरोहर स्थलों का अनुभव निश्चित ही उनके ज्ञान और दृष्टिकोण को व्यापक बनाएगा।”
जिले के शिक्षा विभाग का मानना है कि इस तरह के दौरे न केवल छात्राओं में विज्ञान और तकनीकी क्षेत्रों के प्रति रुचि बढ़ाते हैं, बल्कि उन्हें भारत की विविध और समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर से भी जोड़ते हैं। इस यात्रा ने यह साबित किया कि सीखना केवल कक्षाओं में ही नहीं, बल्कि अनुभव और अवलोकन से भी होता है।