ICICI Bank Minimum Balance: देश में निजी क्षेत्र के आईसीआईसीआई बैंक के नए बचत खातों में मिनिमम बैलेंस के फैसले पर आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) ने पल्ला झाड़ लिया है. आरबीआई ने स्पष्ट कर दिया है कि नए बचत खातों में मिनिमम बैलेंस की रकम तय करना बैंकों का अपना निर्णय है. यह केंद्रीय बैंक के नियामक अधिकार क्षेत्र में नहीं आता. हाल ही में आईसीआईसीआई बैंक ने नए बचत खातों के लिए न्यूनतम औसत मासिक शेष राशि (एमएबी) में बड़ी बढ़ोतरी की है, जिससे आम जनता और नागरिक संस्थाओं के बीच नाराजगी बढ़ गई है.
सोमवार को गुजरात के मेहसाणा जिले के गोजरिया ग्राम पंचायत में वित्तीय समावेश पर आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान आरबीआई के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा, “आरबीआई ने मिनिमम बैलेंस की राशि तय करने का निर्णय प्रत्येक बैंकों पर छोड़ दिया है. कुछ बैंकों ने इसे 10,000 रुपये रखा है, कुछ ने 2,000 रुपये रखा है और कुछ ने ग्राहकों को इससे छूट दी है. यह हमारे नियामक अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है.” उन्होंने यह भी कहा कि डिजिटल साक्षरता आज के समय में सफलता के लिए अनिवार्य है, ठीक वैसे ही जैसे पहले शिक्षा को प्रगति की कुंजी माना जाता था.
आईसीआईसीआई बैंक का फैसला
आईसीआईसीआई बैंक ने 1 अगस्त 2025 से नए बचत खाते खोलने वाले ग्राहकों के लिए न्यूनतम औसत मासिक शेष राशि की सीमा को पांच गुना बढ़ा दिया है.
- शहरी क्षेत्रों में 10,000 रुपये से बढ़ाकर 50,000 रुपये
- अर्ध-शहरी क्षेत्रों में 5,000 रुपये से बढ़ाकर 25,000 रुपये
- ग्रामीण क्षेत्रों में 2,000 रुपये से बढ़ाकर 10,000 रुपये
यह बदलाव केवल नए खातों पर लागू है, लेकिन इसका असर बैंकिंग सेक्टर में बहस को जन्म दे रहा है.
एसबीआई का अलग रुख
इसके विपरीत, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने बचत खाताधारकों से न्यूनतम शेष राशि न रखने पर कोई जुर्माना न लगाने का निर्णय लिया है. यह कदम वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने और ग्रामीण व निम्न आय वर्ग के ग्राहकों को बैंकिंग प्रणाली से जोड़ने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है.
नागरिक संस्थाओं का विरोध
नागरिक संस्था ‘बैंक बचाओ देश बचाओ मंच’ ने आईसीआईसीआई बैंक के इस फैसले का कड़ा विरोध किया है. संगठन ने वित्त मंत्री को पत्र लिखकर मांग की है कि इस निर्णय में हस्तक्षेप किया जाए. संस्था के संयुक्त संयोजक विश्वरंजन रे और सौम्य दत्ता ने अपने पत्र में कहा है, “यह प्रतिगामी निर्णय समावेशी बैंकिंग के सिद्धांत को कमजोर करता है और सरकार के विकास दृष्टिकोण के खिलाफ है.” उन्होंने आरोप लगाया कि इतनी ऊंची न्यूनतम राशि तय करना गरीब और निम्न-मध्यम वर्ग के लोगों को बैंकिंग सेवाओं से दूर कर देगा.
वित्तीय समावेशन पर असर
प्रधानमंत्री जन-धन योजना जैसी पहल का उद्देश्य देश के हर व्यक्ति को बैंकिंग सेवाओं तक पहुंच प्रदान करना है. लेकिन, मिनिमम बैलेंस की राशि की ऊंची सीमा इस प्रयास को कमजोर कर सकती है. खासकर, उन लोगों के लिए जिनकी मासिक आय सीमित है. आरबीआई गवर्नर ने भी कार्यक्रम में कहा कि किसी भी नीति या फैसले का लाभ समाज के सबसे निचले तबके तक पहुंचना चाहिए.
डिजिटल साक्षरता पर जोर
संजय मल्होत्रा ने डिजिटल युग में साक्षरता के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि जैसे पहले पढ़ाई न करने पर व्यक्ति पिछड़ जाता था, वैसे ही आज डिजिटल साक्षरता के बिना प्रगति असंभव है. डिजिटल बैंकिंग और ऑनलाइन लेनदेन के बढ़ते दौर में यह बात और भी प्रासंगिक हो गई है.
ग्राहकों के सामने चुनौतियां
आईसीआईसीआई बैंक के नए नियम से कई चुनौतियां सामने आ सकती हैं.
- ग्रामीण और अर्ध-शहरी ग्राहकों पर असर: यहां आय का स्तर कम होता है, जिससे 10,000 या 25,000 रुपये का एमएबी बनाए रखना मुश्किल होगा.
- वित्तीय बहिष्करण का खतरा: गरीब और निम्न-मध्यम वर्ग के ग्राहक बैंकिंग सेवाओं से कट सकते हैं.
- प्रतिस्पर्धी बैंकों की ओर रुझान: ग्राहक ऐसे बैंकों की ओर रुख कर सकते हैं जहां मिनिमम बैलेंस की राशि की आवश्यकता कम है या नहीं है.
बैंकिंग सेक्टर में असमानता
आईसीआईसीआई बैंक का यह कदम और एसबीआई जैसे बैंकों की नीतियां बैंकिंग सेक्टर में असमानता को दर्शाती हैं. जहां एक ओर कुछ बैंक ग्राहकों पर बोझ कम कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ बैंक इसे बढ़ा रहे हैं.
सरकार को करना होगा हस्तक्षेप
विशेषज्ञों का कहना है कि मिनिमम बैलेंस के मामले में बैंकों की इस प्रकार की मनमानी में सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए. वित्त मंत्रालय को हस्तक्षेप करके यह सुनिश्चित करना होगा कि मिनिमम बैलेंस की राशि की नीति समावेशी हो. ग्राहकों को अपने विकल्पों और बैंकों की नीतियों की जानकारी होनी चाहिए. डिजिटल और वित्तीय साक्षरता पर जोर देकर लोगों को बेहतर बैंकिंग विकल्प चुनने के लिए सक्षम बनाना जरूरी है.
बैंकिंग सेक्टर में छिड़ी नई बहस
आईसीआईसीआई बैंक के न्यूनतम शेष राशि बढ़ाने के फैसले ने बैंकिंग सेक्टर में नई बहस छेड़ दी है. जहां आरबीआई ने स्पष्ट कर दिया है कि यह बैंकों का अधिकार क्षेत्र है, वहीं नागरिक संस्थाएं इसे वित्तीय समावेशन के खिलाफ मान रही हैं. इस परिस्थिति में जरूरी है कि बैंकिंग नीतियां ऐसी हों जो हर वर्ग के लोगों को ध्यान में रखें, ताकि समावेशी और स्थायी वित्तीय विकास सुनिश्चित किया जा सके.