राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने अमेरिकी टैरिफ और H-1B वीजा फीस पर प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा कि भारत को अमेरिकी फैसलों के बीच चुनौतियों से निपटने के लिए जो भी जरूरी हो करना चाहिए. उन्होंने कहा कि भारत और दुनिया के सामने जो वर्तमान परिस्थितियां हैं वे पिछले 2 हजार सालों से अपनाई गई उस व्यवस्था का नतीजा है जो विकास और सुख की दृष्टि पर आधारित रही है.
मोहन भागवत ने आगे कहा कि हम इस स्थिति से मुंह नहीं मोड़ सकते. हमें इससे बाहर निकलने के लिए जो भी ज़रूरी हो, करना होगा. लेकिन हम आंख मूंदकर आगे नहीं बढ़ सकते. हमें अपना रास्ता खुद बनाना होगा.
इस दौरान RSS चीफ ने कहा कि भविष्य में किसी न किसी मोड़ पर हमें इन सब चीज़ों का फिर से सामना करना पड़ेगा. क्योंकि इस खंडित दृष्टिकोण में एक ‘मैं’ और बाकी दुनिया है या ‘हम’ और ‘वे’ हैं.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख भागवत ने कहा कि हर किसी के अलग-अलग हित हैं. इसलिए संघर्ष जारी रहेगा. लेकिन, सिर्फ़ राष्ट्र हित ही मायने नहीं रखता. मेरा भी हित है. मैं सब कुछ अपने हाथ में रखना चाहता हूँ.
पर्यावरण संबंधी प्रतिबद्धताओं पर मोहन भागवत ने कहा कि भारत एकमात्र ऐसा राष्ट्र है जिसने अपने वादों को लगातार पूरा किया है. उन्होंने आगे कहा- अगर हमें हर टकराव में लड़ना होता, तो हम 1947 से लेकर आज तक लगातार लड़ते रहते. लेकिन हमने सहन किया, युद्ध को रोका और यहाँ तक कि विरोधियों की भी मदद की.
भागवत ने कहा कि यदि देश विश्वगुरु और विश्वामित्र बनना चाहता है तो उसे अपनी पारंपरिक विश्वदृष्टि को अपनाना होगा. उन्होंने कहा- अगर हम इसे प्रबंधित करना चाहते हैं, तो हमें अपने दृष्टिकोण से सोचना होगा. सौभाग्य से, हमारे देश का दृष्टिकोण पारंपरिक है. जीवन के प्रति यह दृष्टिकोण पुराना नहीं है; यह ‘सनातन’ है. यह हमारे पूर्वजों के हज़ारों वर्षों के अनुभवों से आकार लेता है.
आरएसएस की इकोनॉमी पॉलिसी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने इकोनॉमी पर परंपरागत रूप से स्वदेशी और आत्मनिर्भरता पर जोर दिया है. इसके अलावा स्वदेशी जागरण मंच के माध्यम से वैश्वीकरण के खिलाफ ‘भारतीय मॉडल’ की वकालत की, जिसमें स्टार्टअप्स व इनोवेशन को भी शामिल किया गया.